शनिवार, 28 फ़रवरी 2009

आख़िर मिल गया साईं भक्तो को शिर्डी में रेलवे स्टेशन

शिर्डी पहुँचने के लिए पिछले करीब 108 सालो से साईं भक्त मनमाड और कोपरगाव रेलवे स्टेशन का इस्तेमाल करते आ रहे हैं। मनमाड स्टेशन पर पहली रेलगाडी सन 1900 में पहुँच गई थी और मुंबई से शिर्डी को जोड़ने के लिए एक पैसेंजर रेलगाडी साईं भक्तो को कोपरगाव स्टेशन पर छोड़ती थी। कोपरगाव से शिर्डी की दूरी करीब सोलह किलोमीटर या कहीं आधा घंटा है और मनमाड से शिर्डी की दूरी करीब 65 किलोमीटर या कहें डेढ़ से दो घंटे हैं। शिर्डी आने वाले भक्तो की संख्या लगातार बढ़ रही है ऐसे में शिर्डी का अपना रेलवे स्टेशन बहुत ज़रूरी हो गया था। वर्ष 2000-2001 में शिर्डी से पुन्ताम्बा रेलवे स्टेशन तक एक नई रेल डालने का काम शुरू किया गया था मगर राज्य सरकार के ज़मीन स्थानांतरण करने में ज़्यादा समय लगने के कारण इस लाइन को अब 2009 में शुरू किया गया है।


28 फरवरी 2009 को रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने साईंनगर शिर्डी रेलवे स्टेशन का उद्घाटन किया और शिर्डी - मुंबई पैसेंजर को झंडी दिखाकर रवाना किया। पुन्ताम्बा रेलवे स्टेशन, मनमाड - दौंड रेलवे लाइन पर मनमाड से 70 किलोमीटर और शिर्डी से 20 किलोमीटर दूर है। अभी तक यहाँ रोज़ एक ट्रेन चलाने का प्रस्ताव है मगर यात्रियो की संख्या और ज़रूरत को देखते हुए ये संख्या बढ़ाई जायेगी। साईंनगर शिर्डी रेलवे स्टेशन का प्लेटफोर्म 500 मीटर लंबा है जिसपर 22 कोच वाली ट्रेन आसानी से रुक सकती है। स्टेशन बिल्डिंग में 'प्रतीक्षालय' के अलावा यात्रियो की सुविधा के लिए एक रेल यात्री निवास भी बनाया जा रहा है। रेलवे स्टेशन का डिजाईन सांस्कृतिक परिप्रेक्ष को ध्यान में रखकर बनाया गया है।


श्रीसाईं बाबा संस्थान ट्रस्ट, शिर्डी रेलवे स्टेशन से यात्रियो को बस की सुविधा प्रदान करेगा जो यहाँ से श्रीसाईंबाबा संस्थान के 'श्रीसाईं भक्तिनिवास' तक होगी और ये सुविधा यात्रियो के लिए मुफ्त या बहुत कम पैसो में उपलब्ध होगी। शिर्डी में आने वाले यात्रियो की भीड़ को देखते हुए नगर पालिका के सहयोग से शिर्डी रेलवे स्टेशन और पिम्पल्वाडी रोड के बीच के सड़क बनाई जा रही है जिससे शिर्डी स्टेशन और समाधि मन्दिर क्षेत्र की मोजूदा दो किलोमीटर की दूरी घट कर एक किलोमीटर रह जायेगी

श्रीसाईं अपने भक्तो पर ऐसे ही कृपा करते रहे यही प्रार्थना है। -जय साईं राम



गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009

कैसे पहुँचता है साईलीला टाईम्स पाठको के हाथो तक?

ॐ साईं राम, आप सबको लगता होगा की अखबार के प्रकाशन में बहुत फायदा है और ये काम किसी भी दूसरे काम से आसान है. चलिए आज इसी बात पर चर्चा कर लेते हैं. किसी भी अखबार का प्रकाशन दो मुख्य बातों पर निर्भर करता है छापने के लिए सामग्री और खर्चा निकालने के लिए विज्ञापन. जो भी अखबार इन दो मुख्य द्वारो से भली प्रकार गुज़र जाता है वही सक्षम होता है अपने पाठको के बनाय नियमो पर खरा उतरने में. पाठक, किसी भी अखबार का ध्येय या कहें मंजिल होते हैं. साईलीला टाईम्स के प्रकाशन को आठ साल हो चुके हैं और अखबार के रूप में साईं समाचारों को साईं भक्तो के सामने प्रस्तुत करने में साईलीला टाईम्स ने कभी भी कोताही नहीं बरती है. साईलीला टाईम्स के सामने भी लगभग सभी प्रकार की तकलीफे और मुश्किलें आई हैं मगर साईलीला टाईम्स साईं की लीला का साक्षात् प्रमाण है. साईं ने जहाँ प्रकाशकों को विभिन्न मंचो पर सम्मान दिलाया है वहीँ अनेको बार साईलीला टाईम्स को अपने पाठको की बेरुखी और नाराज़गी का भी सामना करना पड़ा है. साईलीला टाईम्स की तमाम मुश्किलों को शिर्डी में स्वर्ण सिंहासन पर विराजित दया की मूर्ती अखंड भक्तवत्सल अनंतकोटी ब्रह्माण्ड नायक राजाधिराज योगिराज परब्रह्म श्रीसच्चिदानंद समर्थ सतगुरु साईनाथ महाराज ने कदम-कदम पर दूर किया है. प्रेमावातार साईं के चरणों का ये अनुराग है की साईलीला टाईम्स दिन प्रतिदिन अपने पाठको को साईं समाज में हो रही विभिन्न अच्छी बुरी घटनाओं से अवगत कराता है. पाठको के हाथ में पहुँचने तक साईलीला टाईम्स विभिन्न सोपानों को पार करता है. आइये उसी की चर्चा करें और जाने की एक अखबार अपने पाठको तक कैसे पहुँचता है.1. अखबार में प्रकाशित होने वाले पेजों की संख्या का निर्धारण.2. छपाई के लिए निर्धारित खर्च को विज्ञापन और अखबार की प्रति के मूल्य से निकालना3. छापने योग्य सामग्री का चयन और ना छापी जा सकने वाली रचनाओं का संरक्षण4. छपने योग्य सामग्री का टंकण और अखबार का डिजाईन तैयार करना5. विज्ञापन देने वाले सहयोगियों से धनराशि प्राप्त करना और एक बार फिर गड़ना

सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

जय साईंराम, आजकल मैंने एक इश्तेहार देखा है टीवी पर 'घरेलु हिंसा को रोकिये, बस बेल बजाइए'। देखते हुए विचार आया की आख़िर मुसलमानों की मस्जिद में, गुरद्वारो में, गिरजाघरों में हिंदू मंदिरों को तरह बड़े-बड़े घंटे क्यूँ नहीं होते? इसी के साथ मुझे श्रीसाई सत्चरित्र में एक कहानी याद आई की बाबा ने किस प्रकार शिर्डीवालो को समझाया था की रोहिल्ला जो ज़ोर-ज़ोर से इबादत कर रहा है उसकी वजह उसका अन्तःकरण है।बाबा ने बहुत ही साधारण लीला द्वारा भक्तो को संकेत दिया था की अपने मन को मालिक की याद में स्थित करो। हिंदू मंदिरों में घंटे और शंख की आवाज़, सिख मज़हब में 'बोले सो निहाल' का हुंकार, और इस्लाम में अजान की आवाज़ बताती है हमें अपने चित्त को एक आवाज़ के द्बारा केंद्रित करना चाहिए। किसी भी पीर फकीर के मुरीद ज़ोर-ज़ोर से उनकी जयजयकार करते हैं वो हमारे शरीर को एक ध्वनि में पिरोनेके लिए है।कहीं दूर बात करने के लिए हमे जिस प्रकार फोन की बेल बजानी पड़ती है वैसे ही अपने सदगुरु में अपना ध्यान लगाने के लिए हमे हमे उसके नाम का हुंकारा भरना पड़ता है या घंटे बजाने पड़ते हैं। इसी विज्ञापन में वो कहते हैं की 'बेल बजाइए और उन्हें बताइये की आपको पता है'। भाव ये है की आपके गुरु को आपके नाम लेने भर से मालूम हो जाए की आप जाने हैं की वो कितना कारसाज़ है और आपको उस पर पूरा भरोसा है। तो अगर अगली बार आपको साईं की, अपने गुरु की याद आए तो हिचाकिये मत बस साईं राम के नाम का जाप कीजिये और अपने मन में स्थित उस बाबा की बेल बजाइए। जय साईं राम -साईलीला टाईम्स के लिए अमित माथुर, गाजियाबाद से